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Holi Katha :पहली कहानी शिव और पार्वती की है !

Religious Mantra, Festivals, Vrat katha, Poojan Vidhi
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Holi Katha:- होली कथा

होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है। पहली कहानी शिव और पार्वती की है।  हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।  शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी।  उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया।  फिर शिवजी ने पार्वती को देखा।  पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।


होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है।  प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे।  वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे।  परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा।  होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।  परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया।  होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।


होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है। पहली कहानी शिव और पार्वती की है।  हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।  शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी।  उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया।  फिर शिवजी ने पार्वती को देखा।  पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

Holi Festival

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है।  प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे।  वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे।  परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था।  हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा।  होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।  परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया।  होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।कुछ लोग इस उत्सव का सम्बन्ध भगवान कृष्ण से मानते हैं।  राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास गयी।  वह उनको अपना जहरीला दूध पिला कर मारना चाहती थी।  दूध के साथ साथ बालक कृष्ण ने उसके प्राण भी ले लिये।  कहते हैं मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिये ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला।  मथुरा तब से होली का प्रमुख केन्द्र है! होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है।  वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है।  वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है।


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