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Vishwamitra and Menaka Story
महर्षि विश्वामित्र और ऋषि विशिष्ट की लड़ाई
विश्वामित्र राजा गाधि के पुत्र थे। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि उन्होंने कई हज़ार वर्ष राज्य किया और फिर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकले।
मार्ग में वसिष्ठ का आश्रम था। वसिष्ठ का आतिथ्य ग्रहण कर वे लोग चकित रह गये। वसिष्ठ के पास शबला नामक कामधेनु थी, जिसकी सहायता से उन्होंने अनेक प्रकार के व्यंजनों की व्यवस्था कर समस्त अक्षौहिणी सेना का अद्भुत सत्कार किया था। विश्वामित्र ने अनेक प्रलोभन देकर वसिष्ठ से शबला को मांगा, किंतु वसिष्ठ देने को तैयार न हुए। तब विश्वामित्र ने बलपूर्वक उस शबला को ले जाने का प्रयास किया। कामधेनु ने यह जानकर कि वसिष्ठ की इच्छा के बिना विश्वामित्र उन्हें अपने सैन्यबल के भय से ले जा रहे हैं, वसिष्ठ की आज्ञा से शक, यवन और कांबोज जाति के अनेक सैनिकों का बार-बार उत्पादन किया। विश्वामित्र के समस्त सैनिक मारे गये और वे स्वयं ही युद्ध करने के लिए उतरे। गौ की हुंकार के साथ उसके शरीर के विभिन्न अंग-प्रत्यंगों से अनेक प्रकार के सैनिक उत्पन्न हुए। विश्वामित्र के सौ पुत्र भी वसिष्ठ से युद्ध करने के लिए बढ़े पर वसिष्ठ ने उन्हें भस्म कर डाला। अत्यंत लज्जित होकर विश्वामित्र ने अपने एक पुत्र को राज्य भार सौंपा और स्वयं शिव जी की तपस्या में लीन हो गये। शिव के वरदान से उन्होंने वेद, उपनिषद आदि समस्त विद्या तथा शस्त्र-ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने वसिष्ठ का आश्रम उजाड़ डाला। उनके शस्त्र-प्रयोग से रुष्ट हो वसिष्ठ ने अपना दंड उठाकर विश्वामित्र को चुनौती दी। उनके दंड के सम्मुख विश्वामित्र का क्षात्रबल परास्त हो गया और वे लज्जित होकर ब्राह्मणत्व की उपलब्धि के लिए तपस्या करने चले गये। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ एक हज़ार वर्ष तक तपस्या की तथा ब्रह्मा ने प्रकट होकर कहा-‘हे राजर्षि, तुमने अपने तप से सब लोक जीत लिये हैं।’ ब्रह्मा के मुंह से ‘राजर्षि’ शब्द सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा और विश्वामित्र ने सोचा कि उनकी तपस्या में अभी भी कुछ कमी है।
मेनका से प्यार: Vishwamitra and Menaka STory
तपस्या करते हुए सबसे पहले मेनका अप्सरा के माध्यम से विश्वामित्र के जीवन में काम का विघ्न आया। ये सब कुछ छोड़कर मेनका के प्रेम में डूब गये। जब इन्हें होश आया तो इनके मन में पश्चात्ताप का उदय हुआ। ये पुन: कठोर तपस्या में लगे और सिद्ध हो गये। काम के बाद क्रोध ने भी विश्वामित्र को पराजित किया।
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