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रूप चतुर्दशी की कथा के अनुसार एक समय भारत वर्ष में हिरण्यगर्भ नामक नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अत: उन्होंने समाधि लगा ली। समाधि लगाए कुछ ही दिन बीते थे कि उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। बालों में भी छोटे-छोटे कीड़े लग गए। आंखों की रोओं और भौंहों पर जुएं जम गईं। ऐसी दशा के कारण योगीराज बहुत दुखी रहने लगे।
इतने में ही वहां नारदजी घूमते हुए वीणा और करताल बजाते हुए आ गए। तब योगीराज बोले- हे भगवान मैं भगवान के चिंतन में लीन होना चाहता था, परंतु मेरी यह दशा क्यों गई?
इस पर नारदजी बोले- देह आचार से अब तुम्हें कोई लाभ नहीं है। पहले जो मैं तुम्हें बताता हूं उसे करना। फिर देह आचार के बारे में बताऊंगा।
थोड़ा रुककर नारदजी ने कहा- इस बार जब कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आए तो तुम उस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा ध्यान से करना। ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा ही स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा।
योगीराज ने ऐसा ही किया और उनका शरीर पहले जैसा हो गया। उसी दिन से इसको रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। हे भगवान जैसा आपने योगीराज को रूप दिया वैसा सबको देना….।
Roop Chaturdashi, Roop Chaturdashi 2012, Choti Diwali Puja
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