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Puri Jagannath Rath Yatra 2012

Religious Mantra, Festivals, Vrat katha, Poojan Vidhi
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Puri Jagannath Rath Yatra 2012

1. रथ यात्रा पर 2.18 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।


2. 25000 किलो मूंग का प्रसाद बना है।


3. भगवान का रथ खींचने के लिए 1200 खलासी लगे हैं।


4. देशभर से 2000 संत इस यात्रा में शामिल होने के लिए जुटे हैं।


5. यात्रा के दौरान सुरक्षा के लिए 4800 जवान तैनात हैं।


6. यात्रा में 18 हाथियों का जुलूस निकल रहा है।


7. श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिए 30 अखाड़ा शामिल हुए हैं।


8. प्रसाद बांटने के लिए सरसपुर में 18 किचन बनाए गए हैं।


9. इस रथयात्रा में 98 ट्रक और झाकियां शामिल हुई हैं।


10. रथयात्रा की परंपरा 135 साल पुरानी है।


रथयात्रा असाढ़ सुद द्वितीया के दिन शुरू होती है और आठ दिनों तक चलती है। यह भारत के चार बड़े धामों में से एक है। इस जगन्नाथपुरी में यह उत्सव सबसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभाद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर पुरी के मार्गों पर नगरयात्रा करने निकलते हैं। इस अवसर पर पूरे विश्व से एकत्र हुए हजारों यात्रियों द्वारा इस रथ को खींचा जाता है।


पुरी के राजा गजपति सोने के झाड़ू से मार्ग साफ करते हैं। रथ को विविध रंगों के कपड़ों से सजाया जाता है और उनके अलग-अलग नाम रखे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ का ‘नंदिघोष’, बलराम के रथ का ‘तालध्वज’ तथा सुभाद्राजी के रथ का ‘दर्पदलन’ नाम रखा जाता है। नंदिघोष का रंग लाल और पीला, तालध्वज का रंग लाल और हरा तथा दर्पदलन का रंग लाल और नीला रखा जाता है। पुरी में देवी सुभाद्रा की पूजा होने पर भी उन्हें हिंदू पुराणों में देवी नहीं कहा गया है। मात्र महाभारत में सुभाद्रा भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की प्रिय बहन होने का उल्लेख किया गया है।


पुरी की ये तीनों प्रतिमाएँ भारत के सभी देवी – देवताओं की तरह नहीं होतीं। वे आदिवासी मुखाकृति के साथ अधिक साम्यता रखती हैं। पुरी का मुख्य मंदिर बारहवीं सदी में राजा अनंतवर्मन के शासनकाल के दौरान बनाया गया है। उसके बाद जगन्नाथजी के १२० मंदिर बनाए गए हैं। रथयात्रा शुरू होने से पहले सभी रथों को उचित ढंग से आयोजित किया जाता है। सर्व प्रथम बड़े भाई बलराम का ४४ फुट ऊँचा रथ, उसके बाद देवी सुभाद्रा का ४३ फुट ऊँचा रथ और अंत में ४५ फुट ऊँचा श्री जगन्नाथजी का रथ सुबह से नगरयात्रा पर निकलकर पूरे दिन शहर के मार्गों पर घूमता रहता है और गडिया मंदिर की तरफ धीमी गति से आगे बढ़ता रहता है। ये तीनों आठ दिनों तक आराम करते हैं और नौवें दिन सुबह पूजा विधि करने के बाद वे वापस मंदिर में आते हैं। रथयात्रा के पहले दिन सभी रथों को मुख मार्ग की तरफ उचित क्रम में संयोजित किया जाता है। रथ वापस लौटने की यात्रा को उड़िया भाषा में ‘बहुदा यात्रा’ कहा जाता है, जो सुबह शुरू होकर जगन्नाथ मंदिर के सामने पूरी होती है। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभाद्रा तीनों को उनके रथ में स्थापित किया जाता है और एकादशी तक उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद पुनः उन्हें अपने-अपने स्थान पर मंदिर में बिराजमान किया जाता है। प्रतिवर्ष तीनों रथ लकड़ी से बनाए जाते हैं, जिसमें लोहे का बिलकुल उपयोग नहीं किया जाता। बसंत पंचमी के दिन लकड़ी एकत्र की जाती है और तीज के दिन रथ बनाना शुरू होता है। रथ यात्रा के थोड़े दिन पहले ही उसका निर्माण कार्य पूरा होता है। रथयात्रा समारोह प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया से प्रारम्भ होकर आषाढ शुक्ल दशमी को समाप्त होता है।


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