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नवरात्र : माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय

Religious Mantra, Festivals, Vrat katha, Poojan Vidhi
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भारत में आज हम महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं. महिला सशक्तिकरण की बयार चल रही है और इसी समय आया है नवरात्र का पर्व. एक ऐसा पर्व जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है.


नारी मूलत: शक्ति है. वह असीम ऊर्जा है, जिसके बिना संरचना, पोषण, रक्षा और आनंद की कल्पना नहीं की जा सकती. नवरात्र में हम उसी नारी शक्ति को पूजते हैं. भारतीय दर्शन ने मां दुर्गा के माध्यम से नारी-शक्ति को महत्व दिया है.


Navratriपुराणों में नवरात्र

मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई. इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है.


कलश स्थापना, देवी दुर्गा की स्तुति, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध – यह नौ दिनों तक चलने वाले साधना पर्व नवरात्र का चित्रण है. हमारी संस्कृति में नवरात्र पर्व की साधना का विशेष महत्व है. नवरात्र पूजा पर्व वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में.


नवरात्र में ईश-साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है. आश्विन माह की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. यही वजह है कि नवरात्र के दौरान प्रत्येक इंसान एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पडता है. वैसे तो ईश्वर का आशीर्वाद हम पर सदा ही बना रहता है, किन्तु कुछ विशेष अवसरों पर उनके प्रेम, कृपा का लाभ हमें अधिक मिलता है. पावन पर्व नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है. इसके परिणामस्वरूप ही मनुष्यों को लोक मंगल के क्रिया-कलापों में आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है.


नवरात्र को दो भागों में बांटा जा सकता है. पहले भाग में नवरात्र में की जाने वाली देवी की साधना और उपासना को रखा जा सकता है. दूसरे भाग में व्रत और उपवास की प्रक्रिया रखी जा सकती है. ऐसा माना जाता है कि परमानंद की प्राप्ति तभी संभव है, जब दोनों भागों की प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया जाए.


नवरात्रके नौ दिनों में स्वयं के बुरे विचार, क्रोध, छल-कपट, ईष्र्या आदि जैसे बुरे गुणों पर नियंत्रण किया जाता है. यदि आप इन नौ दिनों में मानव कल्याण में रत रहते हैं, तो अनुष्ठान का महत्व और अधिक बढ जाता है.


Navratri vratनवरात्र की नौ देवियां

नवरात्र के इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना होती है. सच यही है कि शक्ति या ऊर्जा में यही क्षमता होती है कि वह स्वयं को अवसर के अनुकूल भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्त कर सके. मां जननी है. हम सबकी ही नहीं, बल्कि राम और कृष्ण तक की जननी है. वह स्वयं को जिन अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त करती है, उसकी शुरुआत होती है दुर्गा के रूप में. मान्यता है कि मां दुर्गा ने लगातार नौ दिन और नौ रात तक युद्ध करके महिषासुर का वध किया था. यह उसके रक्षक का रूप है, लेकिन सौम्य रूप, जिन्हें हम आगे रक्षक के रौद्र रूप में भी पाते हैं. शक्ति के इस रूप को नाम दिया गया काली का. इस रूप को हम दूसरे दिन पूजते हैं. तीसरे दिन यह मां ऐसे रूप में पूजी जाती है, जिसने संपूर्ण सृष्टि का सृजन किया है. तभी तो इन्हें जगदंबा कहा गया. चौथे दिन जगदंबा अन्नपूर्णा का रूप ले लेती हैं, ताकि अपने सृजित जगत का पेट भर सकें. उसे अन्न उपलब्ध करा सकें. इसके बाद यह नारी-शक्ति हमारे सामने सर्वमंगल, भैरवी, चंडिका, ललिता और भवानी के जिन रूपों में प्रकट होती हैं, उसका मूल उद्देश्य जगत का कल्याण करना होता है.


नवरात्र में हम शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना करते हैं. इस दौरान कुछ भक्तगण नौ दिनों का उपवास रखते हैं, तो कुछ सिर्फ पहले और अंतिम दिन उपवास रखते हैं. दरअसल, त्यौहारों खासकर नवरात्र में उपवास का विशेष महत्व है. उपवास में उप का अर्थ है निकट और वास का मतलब निवास करना. कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास के माध्यम से ईश्वर से निकटता और बढ़ जाती है.


नवरात्र कथा

पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में दुर्गम नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया. उनसे वरदान लेने के बाद उसने चारों वेद व पुराणों को कब्जे में लेकर कहीं छिपा दिया. जिस कारण पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया.


इस वजह से चारों ओर घोर अकाल पड गया. पेड़-पौधे व नदी-नाले सूखने लगे. चारो ओर हाहाकार मच गया. जीव जंतु मरने लगे. सृष्टि का विनाश होने लगा.


सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रखकर नौ दिन तक मां जगदंबा की आराधना की और माता से सृष्टि को बचाने की विनती की. तब मां भगवती व असुर दुर्गम के बीच घमासान युद्ध हुआ. मां भगवती ने दुर्गम का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया. तभी से नवदुर्गा तथा नव व्रत का शुभारंभ हुआ.


पूजन विधि

पूजा करने से पहले सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन कर अपने ईष्ट देवता को याद करें और फिर व्रत का ध्यान कर अपनी पूजा आरंभ करें.


माता शैलपुत्री: नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया. भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा. किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें. कलश पर मूर्ति स्थापित करें. कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनाएं.


माता शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं.


ध्यान मंत्र

वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्.

वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥

पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.

पट्टांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्.

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥


स्तोत्र मंत्र

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.

सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.

भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.

भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥


कवच मंत्र

ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.

हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥

श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी.

हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा.

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