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रहीम और कबीर के दोहे हामरे जीवन में शिक्षा का एक अच्छा साधन रहे हैं. हमने अपने पिछले ब्लॉग में भी रहीम के दोहे दिए थे और इस बार रहीम (Rahim ke Dohe) और कबीर (Kabir ke Dohe) दोनों के दोहे आपके लिए लेकर आएं है.
किसी ने सच ही कहा है कि अगर हम अपने जीवन में इन दोहे को वास्तविक रुप से कार्य में लाएं तो जीवन एक आदर्श और सफल जीवन बन सकता है. जीवन की डगर और भी सुहानी हो सकती है.
Rahim Ke Dohe : रहीम के दोहे
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्ब।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत।
अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत।।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।
मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्यान।।
सोना, सज्जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार।
दुर्जन कुंभ-कुम्हार के, एकै धका दरार।।
पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।
ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।।
कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ मुल्ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए।।
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